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Supreme court ka bulldozer action par bayan

सरकार की गलतफहमी है कि एक बार चुनाव जीतने के बाद उन्होंने  मनमानी का अधिकार  मिल जाता है। 



इसी भ्रम में सरकार अपने को अदालत से ऊपर समझने लगती है । सुप्रीम कार्टे  ने बुलडारे एक्शन के मामले में फैसला देकर सरकार का यह सपना तोड़  दिया है। हालांकी  सुप्रीम कार्टे  ने यह फैसला दिल्ली की आप सरकार के मामले में  दिया है, किन्तु यह लागू सभी राज्यों  और केंद्र  शासित प्रदेशों  पर होता है  है।

सुप्रीम कार्टे  ने 13 नवबं र को बुलडाजे र एक्शन के खिलाफ दायर याचिका पर फसै ला सुनाते  हएु तीखी टिप्पणी की। साथ ही बुलडाजे र की कारवाई  को लके र गाइडलाइन तय कर दी। 

फैसला सुनाते हुए कार्टे  ने दो टकू कहा कि किसी भी मामले में  आरोपी  होने   या दोषी  ठहराए जाने पर भी घरताडेनास ही नहीं है।सप्रुीम कोर्ट ने जमीयत उलमा-ए-हिन्द बनाम उत्तरी दिल्ली नगर निगम व अन्य सेसंबंधी केस में दो  टकू कहा है कि इस मामले में  मनमाना रवैया बर्दाश्त  नहीं किया जाएगा। 

अधिकारी  मनमाने तरीके से काम नहीं कर सकते । बगरै सनुवाई आरोपी  को दोषी नहीं करार नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट  ने फ़ैसला सनुाते हएु कहा अपना घर पाने की चाहत हर दिल में होती है। यद्यपि यह फसैला दिल्ली सरकर से  संबंधित है पर इनमें  कई  दो राय नहीं है कि इस फैसले के बाद अब योगी सरकार के लिए बुलडोजर एक्शन लेना भी मुश्किल हो जाएगा।कार्यपालिका के पास असीम शक्तियां होती है इसी बल पर हर साल सुप्रीमकोर्ट के आदेशों को कार्यपालिका विभिन्न कारणों  को आधार बनाकर सैकड़ों आदर्शों का अनुपालन  नहीं करती है।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से शुरू हुआ बुलडोज़र एक्शन का यह सिलसिला पूरे देश में फैल गया था। राज्यों की  सरकारों ने इसका राजनीतिक इस्तेमाल  करने में कसर बाकी नहीं रखी। वाटे बकैं राजनीति ऐसे फ़ैसलों में  साफ नजर आती है। हालांकि  उत्तर प्रदेश में  बलु डाजे र एक्शन अपराधियों के आवास और व्यवसायिक प्रतिष्ठान गिराने के लिए लिया गया था। बलु डाजेर एक्शन में भी अपराधियों में भदेभाव के उदारहण मौजूदा है। 

इसका दुरुपयागे भी साप्रंदायिक आधार पर किया  गया। इनमें  कोई संदेह नहीं कि ऐसी सख्त कार्रवाई से अपराधियों  में  कहीं न कहीं खाफै उत्पन्न होता है।उत्तर प्रदेश में  योगी  सरकार ने जिस तरह माफिया या गगैं स्टर का सफाया किया, उससे काफी हद तक अपराधों पर लगाम लग सकी है। इस करवाई  से शायद ही र्काइे  इत्तफाक रखता है। सवाल यही आता है कि अपराध रोकने की आड़ में सरकार क्या क़ानून से ऊपर है 

बुलडोज़र एक्शन में यही बात नज़र आती है। दरअसल यह काम देश की अदालतों का है कि सुनवाई के बाद आरोपी को सज़ा देने या नई देने  का बुलडोज़र एक्शन में ऐसे न्याय की संभावना पहले ही ख़त्म हो जाती है जहां बग़ैर किसी सुनवाई  के फ़ैसला सुना दिया जाता है। इसमें अगर आरोपी ग़लत भी ना हो तो उसके घर या दुकान को तुड़वाने की सज़ा भुगतनी पड़ती है। 

जबकि सज़ा तय करने की ज़िम्मेदारी सरकार की है सरकार की यह हरकत निश्चित तौर पर अदालत के  मामले में दखलअन्दाज़ी है।बुलडाजेर एक्शन की कार्रवाई सरकारों को बेशक सस्ती लाके प्रियता दिला सकती है, न्याय नही। महाराजगजं जिले में  सडक़ के फारे लने की चौडी़करण के सम्बन्ध एक व्यक्ति के मकान गिराने के लके र कार्टे  ने काफी तीखी टिप्पणी दी और उत्तर प्रदेश सरकार पर 25 लाख का जुर्माना भी लगाया। हालांकी  यह विकास कार्यों  लिए की गई कार्यवाई थी।

इसमें  सरकार की वह मंशा नहीं थी कि किसी अपराधी का घर ग़ैर क़ानूनी अवैध  कब्जा की बात कहकर गिराई गई हो ।फिर भी कोर्ट   ने पीडिघ्त की बात सुनी। इस तरह के अतिक्रमण हटाने के भी कायदे-कानून बने हुएहैं। उनका पालना किए गए बगैर सीधे बुलडोजर दौड़ा देना, अन्याय ही कहा जाएगा। ऐसे मामलों  की भी कमी नहीं हैं, जहां आम आदमी की सम्पत्ति को अतिक्रमण के नाम पर ढहा दिया जाता है, वहीं रसूखदारों की तरफ प्रशासन की आँख  उठाने की भी हिम्मत नहीं होती ।

देश  का शायद ही ऐसा र्काइे  शहर होगा जहां प्रभावशाली लोगो  के अतिक्रमण ताडे ने में  सरकार और प्रशासन ने उदाहरण पेश किए होंगे। सरकार आरै प्रशासन प्रभावशाली लोगो के सामने कैसे  नतमस्तक हो जाते हैं  इसका सबसे बडा़ उदाहरण नाऐ डा के ट्विन  टावर का मामला है। सुप्रीम कार्टे  ने अगस्त 2021 में  सुपरटके के नाऐ डा एक्सप्रसे वे पर स्थित एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के अपैक्स और सियान टावरो को अवैध ठहराया था। दोनों 40 मंज़िला टावरो को ढहाने का आदेश  दिया गया। 

कार्टे  ने कपं नी को फ्लैट ख़रीददारो को ब्याज के साथ पैसे वापस करने का आदेश दिया।जबकि इस मामले में  सरकार और नोएडा  ऑथरिटी सब कुछ जानते हुए भी हाथ पर हाथ धरे हुए बैठे रहे। नाऐ डा अथॉरिटी को भी इस ध्वस्तिकरण पर निगरानी करने और रिपार्टे  अदालत को देने  का आदेश  दिया गया है। इस आदेश  के कछु महीनों  बाद बाद ट्विन टावर को ढहा दिया गया। 

बुलडजार एक्शन लेने वाली सरकार और  प्रशासन को यह पहले से ही पता था कि ये टावर नियमों  के विपरीत बनाये गये है इसके बावजूद शासन-प्रशासन में बैठे ज़िम्मेदार आँखें बंद कर बैठे रहे। यहां बुलडोज़र चलाने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। इसकी आपेक्षा ऐसे ही नहीं की गई। इसमें  भारी भ्रष्टाचार की गन्धचरों की  तरफ से आ रही थी, किन्तु अदालत के फैसले से पहले किसी ने इसकी परवाह नहीं की,वहीं कमजारे के मामले में  बुलडाजे र एक्शन लेने में  फुर्ती दिखाई जाती है। देश में  भूमाफिया और बिल्डर की शासन-प्रशासन से मिलीभगत के किस्से आम है।

देश के महानगर से लेकर छोटे शहर में अतिक्रमण  की बाढ़ आई र्हइु है।  ये अतिक्रमण एक दिन में नहीं हुए। अतिक्रमियों  ने सावर्जनिक सुविधा   के छेत्र तक नहीं छोड़े। देश में शायद ही ऐसे कोई  सडक़ या फुटपाथ होगा, जहां अतिक्रमण ने पावं नहीं पसारे। वन छेत्र हो या गोचर भूमि ,यहां तक की तालाब, नदियों  और झीलों के बहाव क्षेत्र भी अतिक्रमियो की भेट चढ़ गए, किन्तु शासन-प्रशासन की तंद्रा भंग  नहीं हुई । 

ये तभी जागते हैं जब अदालतों  का डंडा  चलता है। इन अतिक्रमियो  के निर्माण पर बुलडोज़र चलाने से सब कतराते है। इसका उदाहरण जयपुर का रामगढ़ बांध है। कभी बरसाती जल से सरोबार  रहने वाला यह प्रसिद्ध बांध  अतिक्रमियो का शिकार हो गया। कभी जयपरु की लाइफ लाइन माने जाने वाला यह बांध  कई दशको से सूखा पड़ा है। देश में ऐसे सेकड़ो उदाहरण माजै दू हैं जहां अतिक्रमियो  ने प्राकृतिक श्रोतो  को ही निगल लिया। यहां तक खनन करके की पहाड़ के पहाड़ गायब कर दिए। अरावली की पहाडी़ श्रृंखला इसका भ्रष्टाचार आरै लापरवाही का सबसे बडा़ उदाहरण है। अतिक्रमण के मामले में  वाटे की राजनीति की बदौलत ही छोटे-बड़े शहरों में अवैध कच्ची-पक्की बस्तियां तक बस गई। ये अतिक्रमण सालो साल चलते रहे हैं, किन्तु नेता-अफ़सरों  के गठजोड़ के कारण इन्हें  जड़ से खत्म नहीं किया जा सका। दरअसल बुलडोजर चलना तो ऐसे अतिक्रमणों पर चाहिए,जिसने देश  के आम लोगो  को पैदल चलना तक दुभर कर रखा है। 

इनके बजाए सिर्फ चुनिंदा अतिक्रमियो को अपराधी बता कर बुलडोजर चलवाना सरकार की बदनियति को ही उजागर करता है। ऐसे में  सुप्रीम कार्टे  के इस फसै ले से सरकार को सबक लेना  चाहिए। सुप्रीम  कार्टे  ने फैसले में  यह कहीं नहीं कहा कि अतिक्रमण के खिलाफ कार्यवाई नहीं हो। बल्कि वैधानिक प्रक्रिया अपनाने पर ज़ोर  दिया है।


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